स्त्री रोग (Female Diseases)
अधिकतर महिलाओं की समस्यायें मासिक स्राव से सम्बन्धित होती है, उन्हें मासिक स्राव की अनियमितताओं के कारण अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं। इसके पहले कि उनका इलाज आरम्भ किया जाये उनकी बीमारी के लक्षणों का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए, इसमें विवरण, लक्षण, देखना, सुनना, प्रश्न करना सभी शामिल होना चाहिए। इसके अतिरिक्त मात्राएँ निर्धारण करने में भी सावधानी बरतनी चाहिए। जैसे (1) प्रारम्भ में 30 पोटैन्सी की चार-चार गोलियाँ हर दो घंटे बाद देने से चिकित्सा आरम्भ करनी चाहिए। अगर सुधार दिखायी पड़े तो अन्तर बढ़ा दें और अगर 3-4 मात्रायें दवा देने पर भी सुधार न हो तो दवा बदल दें। निम्न पोटेन्सी जैसे 6X, 6C, 30X को हर दो घंटे या चार घंटे पर देना चाहिए। उच्च पोटेन्सी जैसे 200X, 200C अथवा इससे उच्च पोटेन्सी की मात्रायें 24 घंटे में एक बार ही देनी चाहिए। अगर दवा या पोटेन्सी बदलने से लाभ न हो तो रोगी को अस्पताल में भर्ती करा दें।
1. रजोवोध (मासिक धर्म का रुक जाना (Amenorrhoa)
इसमें निम्न दवायें उपयोगी होती हैं।
(a) एकोनाइट 30- भयंकर सिरदर्द, ठण्ड लगना, पीड़ा एक बार मासिक होकर मासिक धर्म का बन्द होना।
(b) सल्फर 30- अगली बार मासिक समय पर न होना।
(c) ब्रायोनिया 30- मासिक के बदले नाक से खून आना, प्यास अधिक, कब्ज का होना।
(d) ग्रेफाइटिस 30- बहुत देर तक बहुत थोड़ा मासिक स्राव, पीला रंग का मासिक स्राव।
(e) पल्सेटिला 30- दर्द अनियमित, पहली माहवारी में देर, खुली हवा पसंद।
f. नेट्रम म्यूर- रज, रोध, नमक की तीव्र इच्छा, कब्ज।
2. विलम्ब के स्राव (Delayed Mansuration)
(a) ग्रेफाइटिस 30- अकसर मोटी स्त्रियों में विलम्ब से रज स्राव होता है।
(b) पल्सेटिला 30- माहवारी देर से होना।
(c) केलकेरिया फास 30- पहले लाल फिर काला तथा तेज दर्द के साथ स्राव होना।
(d) सेनेसियो क्यू- पहली बार रज स्राव होकर किसी कारण से माहवारी बन्द हो जाना।
3. अति रज स्राव (Menorrhagia)
माहवारी का ज्यादा मात्रा में आना भी औरतों की आम बीमारी है। इसमें निम्न दवायें उपयोगी होती है।
(a) हाईड्रेस्टिस 30- अतिस्राव की दशा में बहुत ही प्रभावकारी औषधि।
(b) कैलकेरिया 30- रोगिणी थुलथुल होती है, पसीना ज्यादा आता है।
(c) इपिकाक 30- मितली के साथ अधिक रजस्राव का होना, लाल रक्त।
(d) चायना 30- अति रजस्राव में उपयोगी दवा।
(e) फेरम मेट 30- रजस्राव का बहुत अधिक बढ़ जाना।
(1) मैग कार्ब 30- रात में अति स्राव का बढ़ जाना।
4. श्वेत प्रदर (Leucorrhoea)
(a) नेट्रम म्यूर 30- नीला सफेद प्रदर तथा पीठ में असहनीय दर्द का होना।
(b) बोरेक्स 6- अधिक गर्मी का अहसास तथा चक्कर आना।
(c) हाइड्रेस्टिस 6- प्रदर गाढ़ा पीला, कमजोरी तथा कब्ज।
(d) पल्सेटिला 30- गाढ़ा पीला नीला जैसा, प्यास का अभाव।
(e) ओवाटोस्टा 31- प्रदर की विशिष्ट दवा।
6. सल्फर 1000- पुराना प्रदर।
5. चेहरे पर बाल
पुरुष की तरह स्त्रियों के भी चेहरे गर्दन तथा स्तनों पर बालों का उग जाना। गर्भस्राव की चिकित्सा यदि गर्भसाव हो जाये तो ऐसा उपाय करें कि गर्भ से भ्रूण अवश्य ही निकल जाये, यदि इसमें विलम्ब होता हो तो इसके लिए पल्सेटिला 30, सिकेली 30, चायना 30 या कैन्थरिस बढ़िया दवायें मानी गयी है। इसी प्रकार कभी-कभी नकली प्रसव का दर्द होता है। उसमें कोलोफाइलम 30, कैमोमिला 6, नक्स वामिका 30 उपयुक्त दवायें होती है।
7. गर्भावस्था की मितली
(a) इपिकाक 200- जब निरन्तर मितली होती हो।
(b) नक्स वोमिक 30- उल्टी की अपेक्षा मितली अधिक हो।
(c) नेट्रम म्यूर 30- बार-बार मितली।
(d) आर्सेनिकम 30- खाने-पीने के बाद मितली।
8. प्रसव में विलम्ब (Delayed Labour)
(a) पल्सेटिला 1000- अत्यन्त विलाप के साथ थोड़ा दर्द।
(b) नक्स बोमिका 1000 अनियमित निष्फल प्रसव पीड़ा।
(c) जेलसिमियम 1000- निचले पेट में काटने जैसी पीड़ा।
(d) कैमोमिला 200- अत्यन्त कष्टदायक वेदना होती हो।
(e) वेलडोना 200- सहसा वेदना में वृद्धि और सहसा आराम।
१. प्रसूति ज्वर (Puerperal.Fever)
प्रसूति ज्वर में निम्न दवायें बड़ी उपयोगी हैं-
(a) एकोनाइट 30- गरम शरीर भंयकर ठण्ड।
(b) ब्रायोनिया 30- मुख का सूखना, बैठने पर वमन, चक्कर।
(c) आर्सेनिक 30- पेट में जलन, कमजोरी अत्यन्त ठण्ड का अनुभव।
(d) बेलाडोना 30- पेट में प्रसव पीड़ा सा दर्द।
10. बाँझपन (Sterility)
स्त्रियों को संतान न होना बाँझपन कहलाता है। शारीरिक दुर्बलता, जरायु में अर्बुद, जरायु का टेढ़ा होना, योनि की संकीर्णता, चर्बी का बढ़ना, ऋतु में गड़बड़ी, प्रदर रोग, अत्यधिक मैथुन आदि कारणों से यह समस्या उत्पन्न होती है। गर्भ रहने के लिए स्त्री के रज और पुरुष का वीर्य दोनों निर्दोष होने चाहिए। दो में से यदि किसी एक का भी दोष होगा तो गर्भाधान नहीं होगा। बाँझपन के तीन प्रकार बताये गये हैं। (1) जन्म बन्ध्या (2) मृत बन्ध्या और (3) काक बन्ध्या।
आयुर्वेद के मत से बाँझपन के 7 कारण माने गये हैं।
औषधियों
(a) आयोडिन 200- जिन स्त्रियों के स्तन सूख जाते हैं।
(b) सीपिया 200- समागम के समय कष्ट, उदासीनता।
(c) कोनाइम 30-डिम्ब कोष की क्षीणता।
(d) कैलकेरिया फ्लोर 200- जरायु और डिम्ब कोष में अवरुद्धता के कारण बाँझपन।
(e) बोरेक्स 30- श्वेत प्रदर के कारण बाँझपन।
(f) प्लेटिनम 30- अत्यधिक कामोन्माद होने पर लाभप्रद।
(g) काम की इच्छा की कमी में डैमियाना क्यू की 10 बूँद सुबह-शाम लेना चाहिए।
टिप्पणी
(a) मनचाही संतान पैदा करना- गर्भाधान के समय दोनों पुरुष और स्त्री के मन में जैसा ख्याल होता है, उसी के अनुसार बच्चे का लिंग भेद होता है। पुरुष के दायें वीर्य कीट और स्त्री के बायें रजकीट मिलने से लड़का तथा पुरुष के बायें वीर्य कीट तथा स्त्री के दायें रजकीट मिलने से लड़की होती है।
(b) गर्भ में पुत्र- पुत्री के पहचान के लिए यह ध्यान देना चाहिए कि गर्भ में लड़का रहने से गर्भिणी के बाये अंग पर विशेष प्रभाव पड़ता है। गर्भिणी की बायीं आँख दाहिनी की अपेक्षा बड़ी हो जायेगी। बायें अंगों में स्फूर्ति और दायें अंगों में शिथिलता मालूम होने लगेगी। गर्भ में लड़की रहने पर लड़का रहने के विपरीत दायें अंगों पर विशेष क्रिया का अनुभव होगा।
(c) पुत्र-पुत्री होने के कारण- गर्भाधान काल में ऋतु सम्बन्धी रक्त की अधिकता से कन्या होती है और शुक्र धातु के अधिक होने से पुत्र होता है।
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