- किसी भी बीमारी की चिकित्सा करते समय रोगी के धातुगत लक्षण
मानसिक लक्षण तथा रोग के लक्षणों के साथ जिस दवा के लक्षणों का
सबसे अधिक समानता हो, उस दवा का उस रोग में प्रथम प्रयोग करना
चाहिए। - कुछ दवाओं को छोड़कर प्रायः सभी दवायें हानिरहित एवं प्रभावशाली
हैं। होमियोपैथिक दवायें शिशु, युवा तथा बुजुर्ग एवं स्त्रियों के लिए
समान रूप से लाभदायक होती हैं फिर भी रोग के लक्षण समझ में न आने पर उन्हें अपने वरीय चिकित्सक से उचित सलाह-परामर्श के बाद
ही लेना चाहिए। - कैम्पर को सभी दवाओं से अलग रखें तथा याद रखें कि कास्टिकम
से पूर्व या पश्चात् फास्फोरस का प्रयोग वर्जित है। कार्बोवेज ड्रासेरा,
लाइकोपोडियम, लैकेसिक का भी उपयोग बार-बार न करें। - औषधियों को धूल, धुआँ एवं गन्ध वाली वस्तुओं से दूर रखें।
- निमोनिया की उग्र अवस्था या रोग की बेचैनी में, बच्चों में आर्सेनिक
का प्रयोग न करें। - तेज ज्वर में स्पाइजेलिया और नेट्रमम्यूर का भी प्रयोग न करें।
- सल्फर के पूर्व कल्केरिया कार्व और सल्फर के बाद लाइकोपोडियम
का प्रयोग न करें। - किसी भी दवा के प्रतिक्रिया (रिएक्शन) करने पर नक्सबोमिका 30 या
कैम्फर का प्रयोग करें। - आपने जिस भी दवा का प्रयोग किया है, उसे अपने चिकित्सक को
अवश्य बता दीजिए ताकि उसे दवा के अगले चुनाव में आसानी हो और
रोगी की हालत और नहीं बिगड़े। - यदि किसी दवा की 2-3 मात्राओं से रोग में कमी मालूम पड़े तो जब
तक उस दवा का प्रभाव समाप्त न हो जाये यानी कि जब तक उस
दवा के प्रभाव से साफ-साफ फायदा होता दिखायी देता रहे, तब तक
उस दवा की दूसरी मात्रा का प्रयोग नहीं करना चाहिए और न ही कोई
दूसरी दवा देनी चाहिए। - किसी औषधि का सेवन करते ही अगर किसी पुरानी बीमारी के सारे
लक्षण गायब हो जाये तो समझना चाहिए कि दवा का चुनाव ठीक नहीं
हुआ है और इस दवा से वह रोग ठीक नहीं होगा। - यदि किसी दवा के प्रयोग करने पर रोग बढ़ जाये तो यह समझना भूल
होगी कि दवा का चुनाव ठीक-ठीक नहीं हुआ है। ऐसे समय 2-4 दिन
दवा बन्द रखने पर बढ़े हुए लक्षण अपने आप कम होने लगते हैं और
कुछ दिन इन्तजार करने पर रोग भी धीरे-धीरे ठीक होने लगता है। - रोगी के लक्षण के साथ दवा के लक्षण मिल जाने पर भी जब चुनी हुई
दवा से फायदा या स्थायी लाभ न हो तो उस समय दवा को एकाएक
न बदलकर केवल उस दवा की शक्ति में ही बदलाव करने से रोगी को फायदा हो सकता है। प्रत्येक बार केवल शक्ति को ही बदल कर
देने से भी लाभ होने लगेगा। यहाँ तो यह देखा गया है कि पानी में
मिली दवा को रोज सवेरे सेवन करने के समय शीशी का पेंदा हाथ के
ऊपर पाँच-छह बार जोर-जोर से ठोक लेना चाहिए इससे भी शक्ति में
परिवर्तन होने से रोगी को अधिक लाभ होता है। - पुरानी जटिल बीमारियों की चिकित्सा करते समय यदि साधारण रोग के
लक्षणों पर अधिक ध्यान न रखा जाये तो भी कोई विशेष नुकसान नहीं
होता है, पर रोग का मूल कारण अर्थात् शरीर में कौन-सा विष छिपा
हुआ है और वह कहाँ से पैदा हुआ है, चिकित्सक को सर्वप्रथम इस
पर ध्यान देना चाहिए। - दवा सेवन करते समय पान के साथ चूना, सोडा लेमिनेड सिरका या
तीखे पदार्थों को छोड़ दें अथवा दाँतों या मुख को अच्छी तरह साफ
करके ही दवा की खुराक लेनी चाहिए। - आयुर्वेदिक या एलोपैथिक चिकित्सा के बाद यदि कोई रोगी होमियोपैथी
चिकित्सा कराने आये तो पहले पहल 6ठी शक्ति से और होमियोपैथी
से छोड़े हुए रोगी को 30वीं शक्ति से चिकित्सा प्रारम्भ करनी चाहिए। - Cure Homeo, Domestic Hunt अपने अनुभव और किताबो के आधार पर जानकारी प्रदान करता है । लेकिन फिर भी हम आपको सलाह देते है कि जटिल तेज और खतरनाक रोग का उपचार आप खुद से न करें । ऐसे रोगों का इलाज दूर बैठकर सिर्फ एक ऐप्प के जरिए नही किया जा सकता । ऐसे मामले में आपको अपने आसपास के चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए क्योंकि जटिल रोगों के लिये फिजिकल एग्जामिनेशन बहुत जरूरी होता है। ।
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